Wednesday, December 30, 2009


कान्हा कान्हा कर सखी
ताज कर दूजी बात
आंख मूँद कर देख ले
माखन वारे हाथ

मधुर बड़ा घनश्याम है
मोहक उसके खेल
मन में उत्सव रात दिन
हुआ कृष्ण से मेल

अशोक व्यास
न्यूयार्क
(१२ अप्रैल ०५ को लिखी पंक्तियाँ
३० दिसंबर ०९ को लोकार्पित)

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