छोड़ सभी संकल्प तुम्हारे द्वार
मुक्त मन, घुला हुआ विस्तार
तुम्हारे चरण ना छू पाऊँ
नहीं मेरा कोई आकार
लिए इन शब्दों की झंकार
शेष है परिचय का एक तार
उसे भी सौंप तुम्हें कर्त्तार
बहूँ, ज्यूं शुद्ध प्रेम रसधार
अशोक व्यास
३० जनवरी २०१० को लिखी गयी
४ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
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