उसने तपिश भरे हाथ से कन्धा सहलाया
दबा हुआ कामना का सैलाब बह आया
सिसक कर इस तरह हल्का होने पर हुआ अचरज
उसने माथे पर लगा दी मेरे अपने चरणों की रज
मानने में विवशता के स्थान पर मुक्ति की लहर
पर बदले हुए रूप में बदला सा लगा सारा शहर
उसका अनुसरण करने में कैसा संतोष पाया
उसने तपिश भरे हाथों से कन्धा सहलाया
इस तरह मुझे अपनाया
या
मुझे मुझसे छुडाया
अशोक व्यास
९ जुलाई २००५ को लिखी
१५ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
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