Tuesday, April 6, 2010

मुझमें मिल श्याम बनो


गिरिधारी की बाहँ पकड़ कर
बोली गोपी, संग चलो
तुम दिख दिख छुप जाते हो
तज खेल सांवरे, संग चलो

मोहन मुस्काये, 
मुरली अधरों पर सजा लई
सुध बुध भूली गोपी ऐसी
हो गई स्वयं ही श्याममई

सब भाव श्याम के अपना कर
बोली सखियों से इठला कर

जो खो जाने को तत्पर हो
मुझमें मिल श्याम बनो, आओ
गर मुझे छोड़, जग प्यारा है
फिर फिर जग के चक्कर खाओ

अशोक व्यास
२४ जून २००५ को लिखी
६ अप्रैल २०१० को लोकार्पित

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