Thursday, April 29, 2010

बस खेल निभाने कान्हा का


आनंद, प्रेम पथ का साथी
ये कृपा द्वार से खुलता है
अनुभूति का सुन्दर झरना
कान्हा से मिलता जुलता है

वो श्याम करूण, आनंद सघन
मेरे रोम रोम में बसता है
मुझे सीमा की अकुलाहट दे
वो मुरलीवाला हंसता है 

उसके छल को पहचान लिया
अब सब कुछ उसका मान लिया
बस खेल निभाने कान्हा का
अब ओढ़ तनिक अभिमान लिया 

अशोक व्यास
१३ अगस्त २००५ को लिखी पंक्तियाँ
२९ अप्रैल २०१० को लोकार्पित

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