चिर आनंद लुटाये केशव
लूट ना कोई पाए
जिसमें जितनी भूख जगी हो
उतना ही वो खाए
प्रेम प्रवाह मधुर मनमोहन
बन्शीधुन बन आये
जिसको चाहे, उसे जगा कर
अपने संग नचाये
नाचे मोहन, नाचे राधा
नाचे गोप-गोपियाँ सारे
तैरे नौका, तेज धार में
निर्भय श्याम सहारे
अद्भुत लीला गिरिधारी की
हरदम नूतन उजियारी
हुई कृपा, हो गयी बावरी
सब कुछ कान्हा पर हारी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ जुलाई ०५ को लिखी
१७ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
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