प्रेम अपार
बहा
सांवरिया
बंशी तान सुनाये,
जो भीगा है
प्रेम नदी में
सिर्फ वही सुन पाए
वस्त्र संभाल रक्खे
ना भीगे
उसने क्या खोया है,
आंसू सबकी आँख सजे
कोई दुःख
कोई सुख रोया है
कान्हा का स्पर्श, जगा आनंद अपार
रुलाये
ऐसे अश्रु बिंदु सहित सब क्लेश-कलुष
धुल जाए
कान्हा प्रियतम
नित्य सखा
अब और नहीं कुछ भाये,
पवन सखी संग
पत्ता पत्ता
कान्हा कान्हा गाये
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० अगस्त २००५ को लिखी
२७ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
1 comment:
व्यास जी, बहुत खूब!
वे नूर बेनूर भले, जिस नूर में पिया की प्यास नहीं।
वह जीवन नरक है, जिस जीवन में प्रभुमिलन की आस नहीं।।
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