सांवरिया संग चली तो जाऊं
पर क्या जाने मोहनी मूरत
दरस वहां ये पाऊँ?
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पाँव में कांटे, प्यास दोपहरी
खड़ी बावरी रस्ते
जिस पथ आये सांझ समय
सांवरिया हँसते हँसते
धूल उडाती धेनु का खुर
कर देता है पावन
ज्यों भंवरा रस फूल चखे त्यों
श्याम संग मेरा मन
मधुसुदन के मधुकर का
रसपान करे मन मेरा
सब जाए पर ना छूटे प्रभु
सुमिरन का धन मेरा
संबंधों का मेला मंगल
उपलब्धि का आँचल चंचल
सब में छुपा हुआ है एक छल
कान्हा सत्य सनातन हर पल
बैठ प्रेम से
गान करूं नित गोविन्द का, गिरिधर का
तन्मय होकर देखूं, वैभव अपने नटवर का
अशोक व्यास
२९ जून 2005 को लिखी
९ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
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