आनंद परम पायो प्रभुजी
तव कृपा अनूठी बरस रही
जो बात कृष्ण का नाम लिए
उसमें मधु, अनुपम सरस रही
गा गोविन्द गोविन्द
मन निसदिन
मत भूल, रूप हरि के
अनगिन
मनमोहन की महिमा अनुपम
छुप छुप कण कण में दरस रही
आनंद परम पायो प्रभुजी
तव कृपा अनूठी बरस रही
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२८ जून ०५ को लिखी
८ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
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