Friday, April 30, 2010

नन्द प्रेम रसशाला


गिरिधर प्रेम प्रसाद अरोगे
गोपीजन ब्रजबाला 
हँस हँस वैभव प्रचुर लुटाये
नंदलाल मतवाला

माखन मिस्री मधुर सुहाए
कृष्ण प्रेम से रुच रुच खाए

नयनों में अमृत उंडेलता
सुन्दरतम छवि वाला
पावन करती, कण कण को यह
नन्द प्रेम रसशाला

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ अगस्त २००५  को लिखी 
३० अप्रैल २०१० को लोकार्पित

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