गिरिधर प्रेम प्रसाद अरोगे
गोपीजन ब्रजबाला
हँस हँस वैभव प्रचुर लुटाये
नंदलाल मतवाला
माखन मिस्री मधुर सुहाए
कृष्ण प्रेम से रुच रुच खाए
नयनों में अमृत उंडेलता
सुन्दरतम छवि वाला
पावन करती, कण कण को यह
नन्द प्रेम रसशाला
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ अगस्त २००५ को लिखी
३० अप्रैल २०१० को लोकार्पित
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