मनमोहन अधर मुरली
धरी धरी बजे रे
मोर पंख माथे सजे
प्रेम सहज झरे रे
श्याम नाम संग लिए
फिरूं डगर डगर में
कान्हा ही कान्हा है
हर एक नगर में
मुग्ध हुई सांवरे पे
अपना तन-मन वारूँ
उसी से है हर वैभव
अपना हर क्षण वारूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क
७ जुलाई २००५ को लिखी
१४ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
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