Wednesday, April 14, 2010

कान्हा ही कान्हा है


मनमोहन अधर मुरली
धरी धरी बजे रे
मोर पंख माथे सजे
प्रेम सहज झरे रे

श्याम नाम संग लिए
फिरूं डगर डगर में
कान्हा ही कान्हा है
हर एक नगर में

मुग्ध हुई सांवरे पे
अपना तन-मन वारूँ
उसी से है हर वैभव
अपना हर क्षण वारूँ


अशोक व्यास
न्यूयार्क
७ जुलाई २००५ को लिखी
१४ अप्रैल २०१० को लोकार्पित

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