मन चल वसंत का गीत सुने
आनंद ताल
कर दे निहाल
तन्मयता का आलिंगन कर
मनमोहन को ही मीत चुनें
अब छोड़ किनारे का आंचल
उतरें अपनेपन में गहरे
अब श्याम समीप चलें झट से
क्यूं रहें परिधि पर ठहरे
हो मिलन आज, इस क्षण ऐसा
चाहा है जन्मों से जैसा
हर सांस शुद्ध, पावन कर दे
कान्हा संग ऐसी प्रीत गुने
मन चल वसंत का गीत सुनें
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
७ मई २००९ को लिखी
५ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
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