देना प्रभुजी
नव स्पंदन
खिले नया नित
मेरा वंदन
क्रीडा निरखूँ
श्याम आपकी
गाऊँ जय जय
देवकी नंदन
चेतन सुमरिन हो
सुखदायक
सांस सांस तुम
सदा सहायक
देखूं, कण कण
कृपा तुम्हारी
जानूं तुम हो
सृष्टि सारी
अर्पित क्षण क्षण
मानस चन्दन
जय कान्हा
जय देवकी नंदन
अशोक व्यास
२८ दिसंबर १९९४ को लिखी
६ अगस्त २०१० को लोकार्पित
1 comment:
बहुत ही सुन्दर भावों से सुसज्जित्।
Post a Comment