Friday, August 6, 2010

अर्पित क्षण क्षण

 
देना प्रभुजी
नव स्पंदन
खिले नया नित
मेरा वंदन
क्रीडा निरखूँ
श्याम आपकी
गाऊँ जय जय
देवकी नंदन

चेतन सुमरिन हो 
सुखदायक
सांस सांस तुम
सदा सहायक

देखूं, कण कण
कृपा तुम्हारी
जानूं तुम हो
सृष्टि सारी

अर्पित क्षण क्षण
मानस चन्दन
जय कान्हा
जय देवकी नंदन

अशोक व्यास
२८ दिसंबर १९९४ को लिखी
६ अगस्त २०१० को लोकार्पित

1 comment:

vandana gupta said...

बहुत ही सुन्दर भावों से सुसज्जित्।