ईश्वर
मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ
मौन में नहीं
शब्दों में
एकांत में नहीं
संसार में
मैं चाहता हूँ
धडकना
तुम्हारे प्रवाह में
'हर लहर तुम्हारी है'
बात ये
आये जैसे अनुभूति में मेरी
छू दो वैसे मुझे तुम
ईश्वर
तुम्हारे होने से हूँ मैं
तो कहीं
मेरे होने से हो तुम भी तो मेरे लिए
ईश्वर
पुकारता हूँ तुम्हें मैं
सुनो
सुन कर जताओ मुझे
कि सुना है तुमने
आनंद के पुल से
निरखू मैं
आभा तुम्हारी
गतिमान हो जाऊं
ठहरे ठहरे
बढ़ें तुम्हारी ओर
लहरें समर्पण की
इस गतिमान स्थिर क्षण के मौन में
आर-पार हो
अपने से
अपार हो जाऊं
मैं भी
तुम्हारी तरह,
ईश्वर
मेरे ईश्वर
मेरे प्यारे ईश्वर
मेरे प्यारे सखा ईश्वर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० दिसंबर १९९४ को भारत में लिखी पंक्तियाँ
९ अगस्त २०१० को लोकार्पित
1 comment:
समर्पण के सुन्दर भाव!
ईश्वर के प्रति यही समर्पण की प्रार्थना
ही हमें ईश्वर की अनुभूति करा सकती है।
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