Saturday, August 14, 2010

बहुत अच्छी बात है





प्रभु! 
एक दृष्टा सा है जो मेरे भीतर 
घुलने नहीं देता मुझे ध्यान में तुम्हारे

थपथपाता कर पीठ
कह देता
"बहुत अच्छी बात है
प्रभु को याद करने बैठते तुम"

इस तरह
करके प्रशंसा
तुम्हारे स्पर्श से
दूर कर देता 
ये मुझको

क्या करुं
कैसे
तुम्हारी ध्यान गंगा में
उतर
मैं भी 
वह लहर बन पाऊँ
जो बढ़ती है छूने चरण तुम्हारे

१० जनवरी १९९५ को लिखी थी मुंबई में
१४ अगस्त २०१० को कृष्णार्पित है न्यूयार्क से

2 comments:

nilesh mathur said...

बहुत ही सुन्दर!

Ravi Kant Sharma said...

अति सुन्दर भावना!