गीला स्पर्श घनश्याम का
स्नेह निर्झर हरिनाम का
चहुँओर छाया उसका नर्तन
मुरली आलोक छू पाये मन
वह श्याम सलौना मन भाये
हर रोम कथा उसकी गाये
उल्लास भरा नन्दलाल मिले
नित श्याम नाम की ताल खिले
जय कृष्ण कृष्ण
हरी कृष्ण कृष्ण
नित कृष्ण कृष्ण की तान राहे
कुछ ओर ना मुझको भान राहे
हर सांस वही, हर कर्म वही
है शब्द्सुधा का मर्म वही
हर पल में दीखे मनमोहन
मैं एक धार को करूँ नमन
अशोक व्यास
१४ जनवरी १९९५ को अहमदाबाद यात्रा के दौरान लिखी गयीं
२७ अगस्त २०१० को लोकार्पित
1 comment:
मंगलवार 31 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
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