वह माखन
जो बिखरा था
छींके पर टंगी मटकी से
बरसों पहले
अब तक
इतना ताज़ा बना है
वही निर्मलता, वही माधुर्य
और शाश्वत मस्ती का स्वाद
अब तक
दे रही है
तुम्हारी याद
तुम कालातीत हो यदि कृष्ण
तो क्या मुझ में भी है कुछ
कालजयी अंश
जिससे सम्बन्ध हमारा
बना हुआ है निरंतर
समय की हर सीढी लांघ कर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
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