Friday, October 29, 2010

यादों का श्रृंगार

 
अनुभव तेरे प्रेम का
मिल जाए एक बार
प्रेममयी लगने लगे
फिर सारा संसार

मनमोहन की बात से
बहती है रसधार
एक सांवरा कर रहा
यादों का श्रृंगार

अपने मन की बात से
नहीं मिलेगा चैन
मनमोहन का साथ ही
शांत करे दिन-रैन

अशोक व्यास
५ जुलाई २०१० को लिखी
२९ अक्टूबर २०१० को लोकार्पित

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