सागर पर्वत नदी किनारे
कान्हा संग सुन्दर हैं सारे
मन मोहन का नाम लिया तो
अपने हो गये चाँद-सितारे
धड़कन ने ऐसी लय पाई
निसदिन राधेश्याम पुकारे
मन ओजस्वी बना रहा है
खेल भले जीते या हारे
यमुनातट की बालू लेकर
रास रंग मानस में धारे
केशव कथा नहीं कहता है
वो केवल मुस्का कर तारे
धूप गयी अँधियारा आया
पासे नए, काल ने दारे
सुन्दर-मधुर हो गया जीवन
सांस सांस है श्याम सहारे
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ मार्च २००६ को लिखी
३० नवम्बर को लोकार्पित
2 comments:
बिल्कुल कान्हा जैसी मोहक रचना...
बहुत बहुत धन्यवाद पूजाजी
कान्हा के मोहक रूप के प्रति
आकर्षण है, इसके लिए बधाई
जय श्री कृष्ण
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