Tuesday, April 13, 2010

मिली प्रेम गति न्यारी




प्रेम उजागर कर कान्हा ने
लीला रास रचाया
छक कर पान किया कण-कण ने
आनंद खूब लुटाया

श्याम सखा संग मस्त गोपियाँ
सुध बुध भूली सारी
छूट गए सब दुःख शोक 
मिली प्रेम गति न्यारी

मन वृन्दावन, यमुना तट पर
वैभव कृष्ण सुनाये
मुरली वाले की व्यापक छवि
अति सुन्दर मन भाये

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
५ जुलाई २००५ को लिखी
१३ अप्रैल २०१० को लोकार्पित

1 comment:

Dev said...

यू तो मैं इतना अनुभवी नहीं की आपकी रचनाओं की परख कर सकू, पर जितना समझता हूँ आपने सभी रचनाये बहुत गंभीर भाव और शब्दों से जड़ी है