कृष्ण करूण, कर कृपा कालभय सकल हरो
प्रेम पंख पावन दो, भक्ति आंगन उतरो
गा तव महिमा
रोम रोम पुलकित आनंदित
ध्यान तुम्हारा
सारे जग को करे समन्वित
पग पग, सुमिरन सुन्दर, मानस में उभरो
कृष्ण करूण, कर कृपा कालभय सकल हरो
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
७ अगस्त २००५ को लिखित
२४ अप्रैल २०१० को लोकार्पित
2 comments:
aapki har abhivyakti,mere kanaha prem ko bada deti hai.....'paya hai bhahut mann bharta nahin, bh jata hai nishchal sneh neer tere liye'....
अति सुन्दर,
जो आकर्षित कर ले, आनंदित कर दे वही तो कृष्ण है।
Post a Comment