तुम आंसू मुस्कान दे, छलते हो त्रिपुरारी
मूढ़ हुआ मैं भूलता, तुम ही दुनिया सारी
ओ अच्युत,
तेरी शरण
तुम हो कृपानिधान
करो क्षमा
हर भूल को
अपना बालक जान
ना जाऊं
महिमा तेरी
मैं तो हूँ नादान
करवाओ
करूणामय कान्हा
सुमिरन रस का पान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ जून १९९८ को लिखी
४ फरवरी २०११ को लोकार्पित
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