Tuesday, February 22, 2011

पांवो में बंधन


मन में कई वासनाओं का डेरा है
उसको नहीं पुकार रहा, जो मेरा है
यहाँ-वहां
इस उस डाली पर
भटके है मन
फूलों की
तलाश, शूल से
लिपटे है मन

उसका द्वार खुला है
पर पांवो में बंधन
पिंजरे से है प्यार
तो कैसे पाए मोहन 

अशोक व्यास
९ अप्रैल १९९७ को लिखी
२२ फरवरी २०११ को लोकार्पित      

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