श्याम सुन्दर से प्रीत है
यही हमारी जात
न भावे मनको सखी
कोइ दूजी बात
श्याम पिया का नाम ले
बैठी जमुना तीर
मन में नदिया प्रेम की
वही दिलाये धीर
एक बार की बात हो
तो भी है कुछ बात
बार बार माँगा करून
श्याम प्रभु का साथ
माखन मिस्री खाय के
आये बाल मुकुंद
मुख जो कर घनश्याम का
मिट गयी सारी धुंद
अशोक व्यास
१९ मई १९९७ को लिखी
२५ फरवरी २०११ को लोकार्पित
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