गज़ब की कविता
७ अप्रैल १९९७ को लिखी गयी
आज २१ फरवरी २०११ को पढ़ते हुए
ऐसे लगा, जैसे शब्दों ने 'गुरु रूप लेकर थप्पड़' मारा हो
अपना लिखा हम भूल भी जाते हैं
और अपने द्वारा व्यक्त बात को कभी पूरी तरह नया पाते हैं
खास करके जब १४ बरस पहले लिखे ऐसे शब्द सामने आते हैं
- अशोक व्यास
कविता
मौन अश्व पर
रास लगा कर
लाद न जबरन उसका नाम
बंद है तू तो
साथ में अपने
कर देगा उसको बदनाम
सहज नहीं गर
बिना प्रेम के
झूठ बुनेगा सच के नाम
ऐसा कपडा
छेदों वाला
नहीं किसी के आये काम
छोड़ दे मन को
चरने दे कुछ
लेने दे जो चाहे नाम
चलते चलते
देखते रहना
स्वयं पुकारेगा घनश्याम
वो पुकार, जो प्यास भरी है
ले आयेगी उसको पास
वर्ना झूठे पंख लगा कर
सारे उम्र चुगेगा घास
जय श्री कृष्ण
1 comment:
सहजता प्रभु को बहुत भाती है | विशाल हृदय एवं उपजाऊ मस्तिस्क का परिचय मिलता है |
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