Thursday, February 10, 2011

जब देखूं कान्हा छवि

 
करूणामय की टेर में, भूले जगत विचार
कब ऐसा दिन आएगा, ओ मेरे पालनहार

मिले तुम्हारे प्रेम का, नित्य मधुर आल्हाद
रहे ह्रदय में श्यामजी, सदा तुम्हारी याद

जब देखूं कान्हा छवि, बरसे अमृत मेघ
क्यूं भटके मन बावरे, चल कान्हा की रेख

माखन मिसरी खाय के, करे छाछ का पान
मुस्का मुस्का दे रहा, तृप्ति का वरदान

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१८ जुलाई १९९८ को लिखी
१० फरवरी २०११ को लोकार्पित

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