जमुना के तट पर
बाट निहारे
सखियाँ कब से
कान्हा की,
करती जाएँ
तरह तरह से
बतियाँ जब से
कान्हा की
श्याम सुन्दर
चढ़ कदम डाल पर
देखे छुप छुप
मुख सबका
व्याकुल सखियाँ
जान न पाई
आ पहुंचा
कान्हा कब का
जय नन्दलाल
जय श्याम सुन्दर
जब छेड़ दिया
मुरली का स्वर
सब उछल पडी
खुशियाँ उमड़ी
लो आयी आयी
मिलन घड़ी
जय जय केशव
जय गिरिधारी
तुम जानो हो
बतियाँ सारी
सब जीत गयी
जब सब हारी
अशोक व्यास
१३ अप्रैल १९९७ को लिखी
२३ फरवरी २०११ को लोकार्पित
1 comment:
"सब जीत गई ,जब सब हार गई "
वाह!क्या विचार है | समर्पण की उत्कट मिसाल |
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