Thursday, February 17, 2011

जैसा भी हूँ, अब अपनाओ, गिरिधारी


ओ केशव, बन्शीवाले, मोहन मेरे
काहे तुम इतना तरसाओ, गिरिधारी

दे दे कर अपनी छवि छीने लेते हो
भक्तजनों को यूं न सताओ गिरिधारी

क्षमा करो, गर कोइ त्रुटि की बाधा हो
जैसा भी हूँ, अब अपनाओ, गिरिधारी

तुम मधुरातिमधुर, आनंद अपार प्रभु
यह अमृतरस हमें चखो, गिरिधारी

खेल तुम्हारे बूझ नहीं पाते हैं हम 
हर उलझन को दूर भागो, गिरिधारी

नृत्य प्रेम में हो तेरे, क्या अद्भुत है
तन्मयता की तान जगाओ, गिरिधारी

जीने का उत्साह जगाओ, गिरिधारी
प्रेम नाव में सैर कराओ, गिरिधारी

अशोक व्यास
२१ जुलाई १९९८ को लिखी
१७ फरवरी २०११ को लोकार्पित        

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