Saturday, February 26, 2011

अस्तित्व भंवर का


जब ये जाना
बात तुम्हारे
समझ गया हूँ
छोड़ गए तुम
बीच भंवर में
साथ चुनौती छोड़ नयी एक

फिर जब माना
समझ मेरी
बिन कृपा तुम्हारी
मुक्त नहीं
कुछ सार सुधा बन कर
बह पाने

तब तुम
ऐसे मुस्काए
कि जैसे है ही नहीं 
अस्तित्व भंवर का

और हुआ क्या
लुप्त भंवर है

गति हंस सी
बनी सहचरी
सोच रहा हूँ
मुक्ति का यह
स्वाद अनूठा 
खेल तुम्हारा
कितना सुन्दर


अशोक व्यास
अमेरिका
शनिवार, २६ फरवरी 2011                     

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