Wednesday, February 9, 2011

आलोक भरा कमरा

 
अक्सर होता है
सुबह होते होते
धुल जाता संताप
नयापन खिलता

स्वयं से नया रिश्ता
उजला
आनंद भरा
उत्साह से सजा

मन
अपने आराध्य के आभार से भरा
महसूस करता
अपनी साँसे
देखता आलोक भरा कमरा
करता उसकी जय जयकार 
 
अशोक व्यास 
१२ जुलाई १९९८ को लिखी
९ फरवरी २०११ को लोकार्पित

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