जीने का उत्साह जगाओ गिरिधारी
प्रेम नाव में सैर कराओ गिरिधारी
तुम करूणामय, नित्य मुक्ति की अनुभूति
मुझको अपने साथ बिठाओ, गिरिधारी
शरण तुम्हारी लेने लायक बन पाऊँ
अनुग्रह कर अधिकार दिलाओ, गिरिधारी
भटक रहा हूँ दूर तुम्हारे सुमिरन से
इस छल के उस पार बुलाओ, गिरिधारी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ जुलाई १९९८ को लिखी
१६ फरवरी २०११ को लोकार्पित
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