Tuesday, February 23, 2010

कृपा तुम्हारी तारे कान्हा


क्षण क्षण अमृतपान करूं मैं
तव महिमा का गान करूं मैं

जिससे सुख दुःख आते जाते
उस अनंत का ध्यान धरूं मैं

कृपा तुम्हारी तारे कान्हा
सुमिरन रस में स्नान करूं मैं


अशोक व्यास
३० दिसंबर ०४ को लिखी
२३ फरवरी २०१० को लोकार्पित

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