Thursday, February 18, 2010

एक पहेली बन गयी अँखियाँ


मनमोहन मुख चंचल बतियाँ
एक पहेली बन गयी अँखियाँ

धर श्रृंगार चले नटवर जब
हो गयी मूरत सारी सखियाँ

भरी प्रेम से गागर मन की
भूल गयीं पनघट पर पनियां

मधुर मौन का माखन खाकर
रुनझुन भूल गयी पैजनियाँ

अशोक व्यास
१७ सितम्बर २००६ को लिखी
१८ फरवरी २०१० को लोकार्पित

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