मनमोहन मुख चंचल बतियाँ
एक पहेली बन गयी अँखियाँ
धर श्रृंगार चले नटवर जब
हो गयी मूरत सारी सखियाँ
भरी प्रेम से गागर मन की
भूल गयीं पनघट पर पनियां
मधुर मौन का माखन खाकर
रुनझुन भूल गयी पैजनियाँ
अशोक व्यास
१७ सितम्बर २००६ को लिखी
१८ फरवरी २०१० को लोकार्पित
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