Sunday, February 14, 2010

कान्हा का परताप


आनंद अपार उजागर है
साँसों में कृपा का सागर है
कृतकृत्य हुआ झूमूं तन्मय
संग मेरे नटवर नागर है

अनुभव में अनुकूलता
कान्हा का परताप 
और अगर प्रतिकूलता
कर उसका ही जाप

 अशोक व्यास
अप्रैल १९, ०६ और अप्रैल २१, ०६ को लिखी
१४ फरवरी १० को लोकार्पित

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