अपनी असमर्थता लिखने में भी
प्रमाद है
साथ में ईश्वर है तो फिर कैसा
अवसाद है
सबसे पहले है वही, जो
सबके बाद है
सच्चा सुख देने वाली, उसी प्रियतम
की याद है
जिसकी स्मृति से आल्हाद है
जिससे हर बस्ती आबाद है
उसी नन्द नंदन को
आज ये नयी फ़रियाद है
मुक्ति पथ दिखलाओ, बंधन से छुडाओ
समर्पण हो निरंतर, ऐसा पाठ पढाओ
अशोक व्यास
१० अप्रैल ०७ को लिखी
८ फरवरी १० को लोकार्पित
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