Monday, February 8, 2010

समर्पण हो निरंतर

अपनी असमर्थता लिखने में भी 
प्रमाद है
साथ में ईश्वर है तो फिर कैसा
अवसाद है
सबसे पहले है वही, जो 
सबके बाद है
सच्चा सुख देने वाली, उसी प्रियतम
की याद है

जिसकी स्मृति से आल्हाद है
जिससे हर बस्ती आबाद है
उसी नन्द नंदन को
आज ये नयी फ़रियाद है

मुक्ति पथ दिखलाओ, बंधन से छुडाओ 
समर्पण हो निरंतर, ऐसा पाठ पढाओ

अशोक व्यास
१० अप्रैल ०७ को लिखी
८ फरवरी १० को लोकार्पित

No comments: