Sunday, February 7, 2010

शरण बिना निस्तार नहीं है



जाने क्या खो गया कहीं पर
जैसे संकट आया भारी
लिए प्रार्थना का पावन पुल
करता जीने की तैय्यारी


शरण बिना निस्तार नहीं है
कृपा बिना तो प्यार नहीं है
हर एक सांस उपहार है उसका
बिन उसके आधार नहीं है

कोमल मन हो शांत निरंतर
गुरु अनुग्रह है संबल निर्झर
जिससे उदगम, जो अमृत घट
उसे सुमिर नित, मन मधुकर


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मार्च ०९ को लिखी
फरवरी १० को लोकार्पित

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