
जाने क्या खो गया कहीं पर
जैसे संकट आया भारी
लिए प्रार्थना का पावन पुल
करता जीने की तैय्यारी
शरण बिना निस्तार नहीं है
कृपा बिना तो प्यार नहीं है
हर एक सांस उपहार है उसका
बिन उसके आधार नहीं है
कोमल मन हो शांत निरंतर
गुरु अनुग्रह है संबल निर्झर
जिससे उदगम, जो अमृत घट
उसे सुमिर नित, ओ मन मधुकर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मार्च ०९ को लिखी
७ फरवरी १० को लोकार्पित
जैसे संकट आया भारी
लिए प्रार्थना का पावन पुल
करता जीने की तैय्यारी
शरण बिना निस्तार नहीं है
कृपा बिना तो प्यार नहीं है
हर एक सांस उपहार है उसका
बिन उसके आधार नहीं है
कोमल मन हो शांत निरंतर
गुरु अनुग्रह है संबल निर्झर
जिससे उदगम, जो अमृत घट
उसे सुमिर नित, ओ मन मधुकर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मार्च ०९ को लिखी
७ फरवरी १० को लोकार्पित
No comments:
Post a Comment