Wednesday, February 3, 2010

दिव्य दरस की आस में


कर कान्हा से बात मन
शोक ताप हो दूर
शीतल आनंद बरसता
करो स्नान भरपूर

दिव्य दरस की आस में
भटकूँ चारों धाम
पग पग गहरी प्यास से
नित्य पुकारूँ श्याम

गिरिधर गुण गाता रहूँ
बैठूं यमुना तीर
बस उसका ही आसरा
जिसने रचा शरीर

मंगल मन, मोहन जपे
सारा जग हर्षाय
सुमिरन रस में डूब कर
कण कण प्रेम लुटाय

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मार्च ११, ०९ को लिखी पंक्तियाँ
३ फरवरी २०१० को लोकार्पित

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