कान्हा मन इधर उधर भटके
तुम छोड़ गए हो पनघट पे
यूँ प्यास जगा कर छुपते हो
हम तो क्षणभंगुर में अटके
ली दिव्य छोड़ कर द्रव्य शरण
उलझा उलझा यह आकर्षण
कब तेरी चोखट बैठ सकूं
फिर पहन के श्रद्धा आभूषण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ अगस्त ०६ को लिखी
१६ फरवरी १० को लोकार्पित
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