Tuesday, February 16, 2010

हम तो क्षणभंगुर में अटके

कान्हा मन इधर उधर भटके
तुम छोड़ गए हो पनघट पे
यूँ प्यास जगा कर छुपते हो
हम तो क्षणभंगुर में अटके


ली दिव्य छोड़ कर द्रव्य शरण
उलझा उलझा यह आकर्षण
कब तेरी चोखट बैठ सकूं
फिर पहन के श्रद्धा आभूषण 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 

२७ अगस्त ०६ को लिखी
१६ फरवरी १० को लोकार्पित

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