Tuesday, December 7, 2010

रखना मन सबसे अपनापन

 
शांत सरल मन चल वृन्दावन
खा ले मनमोहन संग माखन

बिरहन को अग्नि सा लागे
अपना तो प्रेमी है सावन

सुन्दरता आई सब जग की
खेले कान्हा, मन के आँगन
 
मन उदार रहो नित मेरे
जाने कौन रूप हो वामन
 
सारे जग में श्याम सखा है
रखना मन सबसे अपनापन

अशोक व्यास
बुधवार, ४ जनवरी २००५ को लिखी
मंगलवार, ७ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

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