शांत सरल मन चल वृन्दावन
खा ले मनमोहन संग माखन
बिरहन को अग्नि सा लागे
अपना तो प्रेमी है सावन
सुन्दरता आई सब जग की
खेले कान्हा, मन के आँगन
मन उदार रहो नित मेरे
जाने कौन रूप हो वामन
सारे जग में श्याम सखा है
रखना मन सबसे अपनापन
अशोक व्यास
बुधवार, ४ जनवरी २००५ को लिखी
मंगलवार, ७ दिसंबर २०१० को लोकार्पित
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