Tuesday, December 28, 2010

कभी छोड़ कर ना जाना






संबंधों को राख बना कर चला गया
मेरा सब कुछ ख़ाक बना कर चला गया

मुझमें दिखने लगी ज़माने की खुशियाँ
ऐसी अद्भुत साख बना कर चला गया

अपनी दौलत दे तो दी मुझको सारी
पर अब चौकीदार बना कर चला गया

जितने भी थे द्वेष और तृष्णा सारे
छूकर सबसे प्यार बना कर चला गया

मैं कहता था, कभी छोड़ कर ना जाना
पर वो अपना सार जगा कर चला गया

जब जब देखूं, जहां-२ देखूं वो है
तन्मयता का तार सजा कर चला गया

आलोकित है कण कण में जैसे वो ही
सच की वो झंकार सजा कर चला गया


अशोक व्यास
फरवरी १४, २०००६ को लिखी
२८ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

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