संबंधों को राख बना कर चला गया
मेरा सब कुछ ख़ाक बना कर चला गया
मुझमें दिखने लगी ज़माने की खुशियाँ
ऐसी अद्भुत साख बना कर चला गया
अपनी दौलत दे तो दी मुझको सारी
पर अब चौकीदार बना कर चला गया
जितने भी थे द्वेष और तृष्णा सारे
छूकर सबसे प्यार बना कर चला गया
मैं कहता था, कभी छोड़ कर ना जाना
पर वो अपना सार जगा कर चला गया
जब जब देखूं, जहां-२ देखूं वो है
तन्मयता का तार सजा कर चला गया
आलोकित है कण कण में जैसे वो ही
सच की वो झंकार सजा कर चला गया
अशोक व्यास
फरवरी १४, २०००६ को लिखी
२८ दिसंबर २०१० को लोकार्पित
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