मन आनंद बहार सदाव्रत
कान्हा मुख मन सदा रहो रत
उज्जवल अद्भुत करूण दिव्य वह
सांस सांस बस उसकी रंगत
मैं मन बंधन पडा रहा क्यूं
पाकर नित्यमुक्त की संगत
कर उसका सुमिरन रे मनवा
जिससे पग पग हो पावन पथ
अशोक व्यास
२४ दिसंबर २००५ को लिखी
१५ दिसंबर २०१० को लोकार्पित
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