Wednesday, December 15, 2010

पाकर नित्यमुक्त की संगत

 
मन आनंद बहार सदाव्रत
कान्हा मुख मन सदा रहो रत
 
उज्जवल अद्भुत करूण दिव्य वह 
सांस सांस बस उसकी रंगत 
मैं मन बंधन पडा रहा क्यूं
पाकर नित्यमुक्त की संगत

कर उसका सुमिरन रे मनवा
जिससे पग पग हो पावन पथ

अशोक व्यास
२४ दिसंबर २००५  को लिखी
१५ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

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