Friday, December 10, 2010

कण-कण है आनंद रस, क्षण क्षण है संतोष

 
आकर्षण बस कृष्ण का, और ना कोई खिंचाव
ले सुमिरन पतवार चल, बैठ कृपा की नाव

गोविन्द नाम सुना दिया, दिया जगत का कोष
कण-कण है आनंद रस, क्षण क्षण है संतोष

प्रेम गीत गाता फिरूं, श्याम दिसे चहूँ ओर
सब शीतल, उज्जवल करे, मन में ऐसी भोर 
 
 
अशोक व्यास 
६ जनवरी २००५ को लिखी 
१० दिसंबर २०१० को लोकार्पित 

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