Thursday, December 30, 2010

करूणा है श्रृंगार कृष्ण का


 
सार कृष्ण का, प्यार कृष्ण का
सांस-सांस आधार कृष्ण का

नयनों में यह छटा मनोहर
कण कण में आभार कृष्ण का

मैं उसका हूँ, जब यह जाना
दिखता सब संसार कृष्ण का

सोच-समझ कर लिखता हूँ मैं
सोचों पर अधिकार कृष्ण का

जब देखा घबराया अर्जुन
है इतना विस्तार कृष्ण का

मोर पंख माथे पर धारे
करूणा है श्रृंगार कृष्ण का

माँगा सूरज की किरणों से
सुमिरन बारम्बार कृष्ण का

अशोक व्यास
२ मार्च २००६ को लिखी
३० दिसंबर २०१० को लोकार्पित

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