है देह तो उससे मगर
वो देह पर निर्भर नहीं
हर एक जगह उससे है पर
उसका कोई भी घर नहीं
तन की तरंगों को मिले
तृप्ति उसी के नाम से
जब मिल गया उसका पता
फिर तो कोई भी डर नहीं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० मार्च २०१० को लिखी
२६ दिसंबर २०१० को लोकार्पित
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