Wednesday, December 22, 2010

दौलत जगमग पल की

 
श्याम द्वार खोया कहीं
भटक रहा वन जाय
गुरुवर तुमसे बिनती
रस्ता दो बतलाय

आज, अभी को छोड़ कर
फिरे डगरिया कल की
अनदेखी मन कर रहा 
दौलत जगमग पल की

ध्यान नहीं, सुमिरन नहीं
सिर्फ सोच की धार
ऐसे ही होती रहे
बिना खेल के हार

गोविन्द गुण गा बावरे
कर rahe भक्त सुजान
अपने मन की बांसुरी
बजे कृष्ण की तान

अशोक व्यास
१४ जनवरी २००६ को लिखी
२२ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

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