श्याम द्वार खोया कहीं
भटक रहा वन जाय
गुरुवर तुमसे बिनती
रस्ता दो बतलाय
आज, अभी को छोड़ कर
फिरे डगरिया कल की
अनदेखी मन कर रहा
दौलत जगमग पल की
ध्यान नहीं, सुमिरन नहीं
सिर्फ सोच की धार
ऐसे ही होती रहे
बिना खेल के हार
गोविन्द गुण गा बावरे
कर rahe भक्त सुजान
अपने मन की बांसुरी
बजे कृष्ण की तान
अशोक व्यास
१४ जनवरी २००६ को लिखी
२२ दिसंबर २०१० को लोकार्पित
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