Saturday, February 27, 2010

78 - है जहां प्रेम की प्यास वहाँ

१ 
मुस्कात श्याम छवि मन मोरे
आनंद अपार खिले अद्भुत
कान्हा की प्रीत उजागर हो
लागे वसंत सी हर एक रुत


वो जब देखे मुसकाय सखी
सुध बुध बिसरे, अच्छा लागे
ज्ञानीजन कहते जग मिथ्या
मोहे एक एक कण, सच्चा लागे

चहुँ ओर श्याम के दरस करूँ
हर सांस सखी मैं सरस करूँ
है जहां प्रेम की प्यास वहाँ
बन श्याम बदरिया बरस पडूँ

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ फरवरी १०
शनिवार, सुबह १० बज कर २४ मिनट

1 comment:

Vivek Ranjan Shrivastava said...

हो न फिर फसाद , मजहब के नाम पर
केसर में हरा रंग मिले ,इस बार होली में !