Sunday, January 31, 2010

वो अपना तो जग अपना सब


कान्हा के घर काम दिला दे सखी मुझे
सेवा से घनश्याम मिला दे सखी मुझे
आनंदित मन, सुमिरन रस में नित्य रहे
अब वो चिर विश्राम दिला दे सखी मुझे



कान्हा मुख मुस्कान लबालब
करुण लालिमा लाया पूरब
सम रस द्रष्टि, प्रेम लुटाये
वो अपना तो जग अपना सब


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५-२६ दिसंबर ०५ को लिखी
३१ जनवरी १० को लोकार्पित

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