Thursday, February 11, 2010

छोड़ जगत की चाकरी


सुन प्रेम निरंतर कल कल कल
मन हुआ मधुर, रसमय, शीतल

यह श्याम मनोहर कृपा सरस
चिन्मय, मधुमय, साँसे प्रति पल


चल देनु चर्रेय्या संग चलें
अमृत सरिता बन बहें सरल 

परिपूरण परमात्मा
तेरे चरण निवास
अब क्या मांगू श्याम से,
पूरी हो गयी आस

सेवा सुन्दर व्रत मन
करता जा निष्काम
छोड़ जगत की चाकरी
गायेजा घनश्याम

चल जमुना के तीर पर
देह लपेटें धूल
जहाँ श्याम चरणन पड़े
वहीं मिलेगा मूल

प्रेम पकाऊँ रात दिन
छींके धरूं चढाय
टूटेगा छींका स्वयं
श्याम मेरा जब आय


अशोक व्यास
१० अप्रैल ०७  और १७ अप्रैल ०७ को लिखी
ब्लॉग पर फिर आयीं ११ फरवरी १० को