Saturday, February 13, 2010

अमृत सिंचन

बात है मुस्कान की
कान्हा के ध्यान की
प्रेम के मधुर गान की
आनंद की उड़ान की

श्रद्धा क्या है अनुगृह का फल है
करुणामय कान्हा की कृपा ही संबल है
उसकी दृष्टि में अमृत सिंचन
हर सांस पावन, प्रेम हर पल है


अशोक व्यास
२९ जनवरी ०७ को लिखी
१३ फरवरी १० को लोकार्पित

1 comment:

रावेंद्रकुमार रवि said...

"बात ही करनी है, तो
बस बात करो प्यार की!
प्यार की, शृंगार की,
झंकार की, बस प्यार की!"

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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा!"
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संपादक : सरस पायस