Sunday, December 19, 2010

साँसों में श्याम समाया है

 
चल आज बसन्ती पवन चली
साँसों में श्याम समाया है
सखी प्रेम मगन कलियाँ-भँवरे
आनंद परम नभ छाया है

बस्ती बस्ती गिरिधारी है
छवि कान्हा की अति प्यारी है
सब नाच रहे हरि भजन संग
उर में गोविन्द समाया है

अशोक व्यास
१३ अप्रैल २००६ को लिखी
रविवार १९ दिसंबर २०१० को लोकार्पित

2 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

अशोक व्यास जी

जयश्री कृष्ण !
आहा ! ब्राह्म मुहूर्त में आपकी रचना पढ़ कर आत्मा प्रसन्न हो गई …

सचमुच लग रहा है कि उर में गोविन्द समाया है
मुरलीवाले की जै !

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Ashok Vyas said...

Dhanyawaad Swarnkaar jee
swarnim ujiyara bhakti ka
aapke jeevan ko anand se labaalab bhar de

shubhkaamnayen

Ashok